Main Aur Mann
Sunday, May 2, 2010
मैं मन और विचार
Monday, March 29, 2010
मैं और मन,
कुछ अजीब लगता है न ? पर आप जानते हो हम साथ साथ रहते है, कभी मन मुझ पर हावी होता है तो कभी मैं मन पर हावी होता हूँ। मन चाहता है मैं उसके निर्देशों पर चलूँ और मैं चाहता हूँ की मैं मन को अपने बस में कर लूं। ये संघर्ष काफी दिनों तक चलता रहा, फिर पता चला हम दिखते दो है पर है एक। जब मुझे अच्छा नहीं लगता तब मेरा मन भी ख़राब ही होता और जब मन उदास होता तो मुझे अच्छा नहीं लगता, इसका क्या अर्थ लगाया जाये ? एक ही बात पता चली की हम दोनों एक दुसरे के पूरक है अर्थात कभी मुझे मन की बात माननी चाहिये और कभी मन को मेरे मुताबीक चलना चाहिए पर आप जानते हो, मेरे मन के पास एक अजीब शक्ति है, जिस बात के लिए वो नहीं मानता वो बात कभी नहीं सधती, यानी मुझे जब अपनी मर्जी का कुछ करना होता है तो पहले मन को मनाना पड़ता है वर्ना वो कार्य कभी ढंग से नहीं होता, जब भी कोई कार्य करना है तो या तो मन की मानो या फिर उसे मनाओ, अगर कोई कार्य बहूत मुश्किल है पर मन ये मान ले कि ये हो सकता है तो उस कार्य के ना होने की कोई गुंजाईस ही नहीं है ।
मन विचारो से प्रभावित होता है, और विचार परिस्थितियो के परिवर्तन से बदलते रहते है, एक हवा का झोका विचार बदल देता, एक हलकी सी ध्वनी विचारो को प्रभावित करती है। और जब विचार बदलते हो तो वो मन को प्रभावित करते है और मन हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है